जानें वट सावित्री व्रत में बरगद के पेड़ का महत्व

जानें वट सावित्री व्रत में बरगद के पेड़ का महत्व

आज सुहागिन महिलाएं वट सावित्री का व्रत कर रही हैं।

 

vat savitri vrat katha: आज सुहागिन महिलाएं वट सावित्री का व्रत कर रही हैं। यह व्रत पति की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए किया जाता है। इस व्रत में वट वृक्ष (बरगद के पेड़) की पूजा का विशेष महत्व है। यह परंपरा केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि पौराणिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि से भी अत्यंत गूढ़ अर्थ लिए हुए है। वट सावित्री व्रत में वट वृक्ष पति-पत्नी के रिश्ते, दीर्घायु और सौभाग्य का प्रतीक बनता है। साथ ही यह व्रत प्रेम और विश्वास का भाव जाग्रत करता है और पारिवारिक एकता और वैवाहिक जीवन को मजबूती देता है। तो चलिए इसके बारे में जानतें है।

 

क्या है बरगद के पेड़ का महत्व

 

वट वृक्ष (बरगद) भारतीय संस्कृति में अमरता, स्थायित्व और ब्रह्माण्डीय शक्ति का प्रतीक है. इसे त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) का संयुक्त रूप माना जाता है…

 

  • जड़: ब्रह्मा जी का प्रतीक
  • तना: विष्णु जी का प्रतीक
  • डालियां और पत्तियां: शिवजी का प्रतीक
  • इसलिए वट वृक्ष संपूर्ण ब्रह्मांड की ऊर्जा और त्रिदेवों की शक्ति का प्रतीक है. इसकी पूजा का मतलब है – सृजन, पालन और संहार – तीनों शक्तियों को प्रसन्न करना।

जाने आध्यात्मिक महत्व

वट वृक्ष की मजबूत जड़ें और दीर्घायु प्रकृति यह दर्शाती हैं कि जैसे वृक्ष कभी नहीं सूखता, उसी तरह वैवाहिक जीवन भी लंबा और सुरक्षित बना रहे। इसकी छाया शीतल और सुरक्षा देने वाली होती है, जैसे एक स्त्री अपने परिवार के लिए कामना करती है। स्कंद पुराण, पद्म पुराण और महाभारत में वट वृक्ष को पूजनीय और अक्षय पुण्यदायक बताया गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, वट वृक्ष के नीचे किया गया एक दिन का तप, 100 वर्षों के तप के बराबर फल देता है।जिस प्रकार वट वृक्ष गहरी जड़ों से धरती में स्थिर रहता है, उसी तरह एक नारी अपने संस्कार, समर्पण और प्रेम से परिवार को स्थिर रखती है। इसलिए वट वृक्ष की परिक्रमा करते हुए महिलाएं यह संकल्प करती हैं, जैसे यह वट वृक्ष अमर है, वैसे ही मेरा सौभाग्य और पति की आयु अक्षय रहे।